शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

हिन्दी शायरी

लौट आओ कि मेरी साँसे अब तिनका तिनका बिखरती हैं..
कहीं मेरी जान ना ले ले ये पहली शाम दिसंबर की..
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मुझे मालूम है मैं उस के बिना ज़ी नहीं सकता...
उस का भी यही हाल है मगर किसी और के लिए !
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वो याद आया कुछ यूँ, कि लौट आए सब सिलसिले....
ठन्डी हवा, पीले पत्ते और नवम्बर के ये दिन
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हिचकियों पर हिचकियाँ मैं रातभर भरता रहा,
वो सो रहा था तो फिर मुझे कौन याद करता रहा.. ?
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सर-ऐ-आम ये शिकायत है ज़िन्दगी से,
क्यूँ मिलता नहीं मिजाज मेरा किसी से...
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बचपन की नींद अब बहुत याद आती है....
सिर्फ़ मुहब्बत पर ये इलजाम ठीक नहीं
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जाते वक़्त उसने बड़े गुरुर से कहा था ,"तुम जैसे हज़ार मिलेंगे !
मैंने मुस्कराकर कहा, मुझ जैसे की ही तलाश क्यों .. ?
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कुछ हार गयी तकदीर कुछ टूट गए सपने..
कुछ गैरों ने बर्बाद किया कुछ छोड़ गए अपने
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बस यहीं काम हैं...फ़ुर्सत भी बोहोत हैं...
तुम हमारे...हम तुम्हारे...ऐब ढुंढते हैं...
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वो शख्स...शायद...मुझी को सोच रहा होगा...
आंखों में ये गुलाब...वरना कहां से आए...
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हलकी हलकी सी सर्द हवा,,,
ज़रा ज़रा सा दर्द ए दिल,,,
अंदाज अच्छा है ए नवम्बर तेरे आने का,,
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लाजवाब कर देतें हैं...तेरे खयाल...दिल को...
मोहोब्बत...तुझसे अच्छा...तेरा तसव्वुर हैं...
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ये किसका खयाल...कौनसी खुशबु...सता रहीं हैं दिल को...
ये जो करार दिल में हैं...कहीं...ये मोहोब्बत तो नहीं..
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बस यूँ ही लिखता हूँ .. वजह क्या होगी ..??

राहत ज़रा सी ..
आदत ज़रा सी ..!
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अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थे
कत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे
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कोशिश ज़रा सी करता तो मिल ही जाता मैं .... उसने मगर अपनी आँखों में ..... ढूँढा नहीं मुझे
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पूछा था हाल उन्हॊने बड़ी मुद्दतों के बाद...
कुछ गिर गया है आँख में...कह कर हम रो पड़े...
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मेरे सीने से लिपटे होते हैं आज भी एहसास तेरे,
जैसे लिखावट कोई लिपटी हो किताबी पन्नो से ।।
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एक ही चौखट पे सर झुके
तो सुकून मिलता है
भटक जाते हैं वो लोग
जिनके हजारों खुदा होते हैं!
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बुलंदियों की ख्वाइशें तो बहुत है मगर,
दूसरों को रौंदने का हुनर कहाँ से लायें ...
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गर मिल जाती दो दिन कि बादशाहत हमें,
तो मेरे शहर में तेरी तश्वीर का सिक्का चलता..!
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तेरे एक इशारे पे, हम इल्जाम अपने नाम ले लेते
बेवजह, झूठे इल्जाम लगाने की जरुरत क्या थी ?
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मैं भी तनहा हूँ खुदा भी तनहा,
वक़्त कुछ साथ गुज़ारा जाए ...
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ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए,
इतना तो हुआ, कुछ लोग पहचाने गए,,
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होश मुझे भी आ ही जायेगा मगर ,
पहले ! दिल तेरी याद से रिहा तो हो,,,,
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जो तुम बोलो बिखर जाऐंगे, जो तुम चाहो संवर जाऐंगे,
मगर ये टूटना-जुड़ना हमें तकलीफ बहुत देता है ,,,
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जो पूरा न हो सका.. वो किस्सा हूँ मै...
छूटा हुआ ही सही.. तेरा हिस्सा हूँ मै..!!
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उसकी आँखों में नज़र आता है सारा जहां मुझ को .........
अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा .......!!!
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सुलझा हुआ सा समझते है मुझ को लोग.....
उलझा हुआ सा मुझमे, कोई दूसरा भी है....!!
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हम से बेवफाई की इन्तहां क्या पूछते हो दोस्तों.......
वो हम से प्यार सीखती रही किसी और के लिए ....!!
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अब उसे न सोचू तो जिस्म टूटने सा लगता है........
एक वक़्त गुजरा है उसके नाम का नशा करते~करते......!
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तन्हाई तो साथी है अपनी जिन्दगी के हर एक पल की ........
चलो ये शिकवा भी दूर हुआ कि किसी ने साथ नहीं दिया .....!!
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परिन्दों को नहीं दी जाती तालीम उड़ानों की..
वो खुद ही तय करते हैं मंजिल आसमानों की..
रखते हैं जो होसला आसमां को छूने का..
उनको नहीं होती परवाह गिर जाने की..!!!
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बच्चा था भूखा और आँखों में अश्क जरुर था
उस फरिश

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